Bihar: क्या नीतीश अब नहीं रहे सेकुलर? क्या नीतीश वाकई भाजपा के हो गए है?
Bihar: जब से वक्फ संशोधन बिल संसद दे दोनों सदनों में पास हुआ है और नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड वक्फ संशोधन बिल को समर्थन दिया है सियाशी महकमें में नीतीश कुमार पर की सवाल उठाए जा रहे हैं। जदयू के की मुस्लिम बड़े नेता पार्टी से इस्तीफा भी दे दिए है। सवाल यह उठता है की क्या नीतीश कुमार अब सेकुलर नहीं रहे? क्या नीतीश कुमार को बिहार के मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए? क्या वाकई नीतीश कुमार भाजपा के होकर रह गए है? लोग यह बात समझ नहीं रहे है की जहां मुस्लिम वोट पाने के लिए देश के कई छोटे बड़े नेता वक्फ संशोधन बिल के विरुद्ध खड़े है। वही अल्पसंख्यक वोट की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार आज वक्फ संशोधन बिल के समर्थन में खड़े है

नीतीश कुमार पर लगाया जा रहा है आरोप
वही जबसे नीतीश कुमार वक्फ संशोधन बिल को समर्थन दिए है तब से नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाए जा रहे है। राजद ने अपने सोशल मीडिया हैन्डल एक्स पर लिखा की नीतीश अब सबके नहीं रहे। किसी ने लिखा की यह नीतीश नहीं चिटीश है। जदयू के ही अल्पसंख्यक मामले के प्रदेश अध्यक्ष यह आरोप लगते हुए इस्तीफा दे दिया की अब नीतीश कुमार में ओ बात नहीं रहा। इस प्रकार लगातार कई मुस्लिम नेता जदयू का साथ छोड़ देते हैं। विपक्ष द्वारा यह आरोप लगाया जा रहा है की वक्फ संशोधन बिल मुस्लिमों के हकमारी वाला बिल है उसको समर्दन देकर नीतीश कुमार मुस्लिम समुदाय को नाखुश कर रहे हैं।
पसमांदा मुस्लिम का राजनीति करते है नीतीश कुमार
फरवरी 2005 में बिहार विधानसभा का जनादेश बंटा हुआ था। इसी दौर से नीतीश कुमार ने पसमांदा मुसलमानों पर गंभीरता से काम करना शुरू किया।
जेडीयू से दो बार राज्यसभा गए और ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक अली अनवर बीबीसी से बताते हैं, “जुलाई 2005 में हम लोगों ने पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में सम्मेलन किया था। इसमें लालू, नीतीश और रामविलास तीनों को बुलाया था। “
“इसमें लालू और नीतीश कुमार आए जबकि रामविलास जी ने कहा कि वो बीमार हैं. बाद में हमारा मुद्दा नीतीश जी ने संसद में उठाया। पांचजन्य ने इसे लेकर नीतीश कुमार की आलोचना की और हम लोगों को लगा कि नीतीश बीजेपी के साथ रहते हुए भी हमारे हैं।”
अली अनवर के मुताबिक़, इसके बाद पसमांदा मुस्लिमों की एक्जीक्यूटिव कमेटी ने नीतीश कुमार के पक्ष में आने की घोषणा की।
अली अनवर बताते हैं कि नीतीश कुमार ने उनके साथ मिलकर राज्य भर में कई बैठकें कीं।
नवंबर 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने कब्रिस्तान की घेराबंदी, भागलपुर दंगे की न्यायिक जांच कमिटी का गठन, और 20 फ़ीसदी के अति पिछड़ा आरक्षण के फ़ैसले को लागू किया, जिसमें मुस्लिम समुदाय के तबके भी शामिल थे। साथ ही नीतीश कुमार लगातार कहते रहे कि उनकी सरकार ‘थ्री सी’- यानी क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म पर कभी समझौता नहीं करेगी। जहां एक तरफ नीतीश कुमार प्रशासनिक स्तर पर ये कदम उठा रहे थे। वहीं प्रतिनिधित्व के स्तर पर भी उन्होंने मुसलमानों पर फ़ोकस किया।2006 से 2014 के बीच नीतीश कुमार ने पांच मुस्लिम नेताओं को राज्यसभा भेजा। इनमें चार पसमांदा मुस्लिम थे: अली अनवर, एजाज अली, साबिर अली और कहकशां परवीन। वहीं गुलाम रसूल बलियावी ऊंची जाति के मुस्लिम थे।
क्या नीतीश कुमार बिहार के मुसलमानों से नाखुश है?
बीती फरवरी में जब प्रधानमंत्री नरेंद मोदी किसान सम्मान निधि की राशि जारी करने भागलपुर आए तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, “पिछली सरकारें मुस्लिमों का वोट ले लेती थीं लेकिन हिंदू मुसलमान को लड़वाती रहती थीं।”नीतीश कुमार ने ये बात उस भागलपुर में कही थी जहां 1989 में भयावह दंगे हुए थे। भागलपुर दंगों के पीड़ितों के हिमायती बनना और आडवाणी का रथ रोकना, लालू प्रसाद यादव या आरजेडी की पॉलिटिक्स के अहम एलीमेंट थे, जिसके भरोसे उन्होंने डेढ़ दशक तक बिहार की सत्ता संभाली। हाल के दिनों में बिहार विधानमंडल में भी नीतीश कुमार ये बात दोहराते रहते हैं। सिर्फ नीतीश ही नहीं बल्कि इससे पहले राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह, गुलाम रसूल बलियावी सहित कई जेडीयू नेता कह चुके हैं, “हमें मुसलमानों का वोट नहीं मिलता लेकिन ‘हमारे नेता’ ने मुसलमानों के लिए काम किया है।”
Read More –